kumkum ke chhinte
शतरंज का बादशाह
शतरंज का बादशाह
लुढ़का पड़ा है मेरे आँगन की नाली में।
इसके सब मुहरे हैं पिट चुके,
लुट चुकी फौज इसकी,
पैदल, घुड़सवार, ऊँट, हाथी, सभी,
मारा गया इसका वजीर धीर,
गंभीर,
बाँकी आन-बानवाला, शूरवीर,
और यह बादशाह,
लुटा-पिटा, छुटा संग-साथियों से असहाय,
केवल एक छत्रधारी साथ लिये फिरता
देश देशांतरों में,
पर्वत, मरुभूमि घनघोर बयावानों बीच
आश्रय की खोज में
भटकता हुआ रात-दिन
राजे-रजवाड़े, सरदार, उमरावों में
कहाँ नहीं गया! पाँव किसके न पकड़े!
किंतु जिसे सबने ही
शरणागत धर्म छोड़,
शत्रु को ही सौंप देना चाहा एक पल में।
ऐसी क्रूर घातों से निज को बचाता हुआ
लगता है जैसे आज घेरे में आ गया
भाग्य-हीन दारा-सा,
सेंट हेलेना में बंद फ्रांस के विजेता-सा,
एक और गेह में तभी तो शीश धुनता है।
रक्तिम किरीटधारी शाह शतरंज का।
कहाँ आज इसकी चमू वह चतुरंगिणी !
बड़ी एक-एक से सुदृढ़ रक्षा-पंक्तियाँ !
कहाँ वे तुरंग बाँके
ढाई-ढाई गज की
लेते जो उड़ान शत्रुओं के बीच धँसके !
गज मतवाले वे, झुलाते श्यामतुंडिका
कोसों बढ़ जाते थे जो सीधे रिपु-पंक्ति में !
और वक्र-ग्रीव ऊँट, तिरछी गति जिनकी
लज्जित कर देती कामिनी के भ्रू-विलास को !
कहाँ वे पदातियों की शस्त्र-सज्ज श्रेणियाँ !
अंगरक्षकों के चक्र-व्यूह पग-पग पर!
चारों ओर चौकसी, चपलता वजीर की,
तिरछी और सीधी सब गतियाँ थीं ज्ञात जिसे
जानता था भेद राजनीति, लोकनीति के
संधि और विग्रह के!
आज सब निष्फल हैं किंतु कालचक्र से।
हारी हुई बाजी को जिता दे भला ऐसा कौन!
कौन ऐसा शूरमा जो बंदी सम्राट् को
खींच इस दुर्दिन के घेरे से पल में
ले जा फिर अपने बिठा दे उसी तख्त पर!
शतरंज का बादशाह
लुढ़का पड़ा है मेरे आँगन की नाली में ।