nao sindhu mein chhodi
गीत मैंने लिख-लिखकर फाड़े
ओठों पर लाते ही उनको लाज आ गयी आड़े
मन में जो थी छिपी सव्रीड़ा
करती मृदु सपनों से क्रीड़ा
जग पर व्यक्त हुई वह पीड़ा
ज्यों ही पृष्ठ उघाड़े
जो अंतर्नभ में थी छायी
आँधी वह रचना तक आयी
जग ने पढ़-पढ़कर लौटायी
धूल कहाँ तक झाड़े
माना थी पंक्तियाँ मनोहर
पर कागज़ के शेष भाग पर
एक बूँद आँसू ने गिरकर
अक्षर सभी बिगाड़े
गीत मैंने लिख-लिखकर फाड़े
ओंठों पर लाते ही उनको लाज आ गयी आड़े