nao sindhu mein chhodi
जी चुके जीवन को क्या जीना!
पीकर फेंक दिया जो प्याला, फिर उससे क्या पीना!
नित्य नया पथ, नया बसेरा
नयी रात है, नया सवेरा
नित नूतन है यह पथ मेरा
प्रतिपल तान नवीना
अंतिम यही वसंत नहीं है
विरह प्रेम का अंत नहीं हे
क्या यह राग अनंत नहीं है
बजती जिससे वीणा!
जी चुके जीवन को क्या जीना!
पीकर फेंक दिया जो प्याला, फिर उससे क्या पीना!