nao sindhu mein chhodi
यह शोभा किस काम की
यदि जीवन के पार न पहुँचे प्रतिध्वनि मेरे नाम की!
चलता सदा सुपथ पर जो आशा में शुभ परिणाम की
क्यों उस पर भी पड़े निरंतर वक्रदृष्टि विधि वाम की!
सम है यदि जीवन के पट पर झलक श्वेत या श्याम की
बतला तूने निरुद्देश्य क्यों यह रचना अभिराम की!
क्यों लगता ज्यों भाग दौड़ हो जग अंधे संग्राम की
यदि ऋतमय शाश्वत् लीला है यह चेतन ब्रजधाम की
यह शोभा किस काम की
यदि जीवन के पार न पहुँचे प्रतिध्वनि मेरे नाम की!