nao sindhu mein chhodi
यदि वे दिन फिर आते
तो क्या इस लघु जीवन में हम भी कुछ जोड़ न पाते!
क्यों यह मन अपने को ठगता!
केवल कोरे कागज रँगता!
कुछ तो हाथ हमारे लगता
ऐसा दाँव लगाते
निष्फल काल-प्रवाह बह गया
किया जहाँ जो वहीं रह गया
वह सपनों का महल ढह गया
जिस पर थे इतराते
खोये अवसर, चूकी चालें
संकल्पों की बुझी मशालें
किसको रोयें, किसे सँभालें
हम अब जाते-जाते!
यदि वे दिन फिर आते
तो क्या इस लघु जीवन में हम भी कुछ जोड़ न पाते!