nao sindhu mein chhodi

सहन है नहीं विरह भी क्षण का
कैसे सह पायेंगे कल हम चिर-वियोग जीवन का?

मधुर प्रेम रस की ये घातें
होंगी जब सपने की बातें
नहीं रहेंगी जब ये रातें

यह सुख भुजबंधन का?

आज विरह में मन का आँगन
फिर भी मिलन-तीर्थ है पावन
क्या होगा पर हमसे जिस क्षण

साथ छुटेगा तन का?

भ्रांत पथिक-से बिना गेह के
तब हम सुर में सहज स्नेह के
निभा सकेंगे बिना देह के

भाव यही निज मन का?

सहन है नहीं विरह भी क्षण का?
कैसे सह पायेंगे कल हम चिर-वियोग जीवन का?