pankhuriyan gulab ki
और दीवाने सभी चक्कर लगाकर रह गये
बस हमीं गलियों में तेरी ज़िंदगी भर रह गये
वह उठी आँधी कि मंज़िल का पता भी खो गया
दिल में जो अरमान थे दिल में तड़पकर रह गये
फ़िक्र क्या ! अब तो नज़र आने लगा है उनका घर
बीच में बस मील के दो-चार पत्थर रह गये
वह नज़र थी और जो दिल को उड़ा कर ले गयी
जब फिरी, हम अपनी क़िस्मत के बराबर रह गये
कारवाँ गुज़रे बहारों के भी सज-धजकर, गुलाब !
तुम हमेशा बाँधते ही अपना बिस्तर रह गये