pankhuriyan gulab ki
खुली-खुली-सी खिड़कियाँ, लुटी-लुटी-सी बस्तियाँ
बसे थे जो कभी यहाँ, गये वे छोड़कर कहाँ !
कहाँ है प्यार की क़सम ! कहाँ हो तुम, कहाँ हैं हम !
ढलान पर क़दम-क़दम, उतर रहा है कारवाँ
मिलो न चाहे उम्र भर, मगर हो दिल के हमसफ़र
जली न आग जो उधर, उठा कहाँ से यह धुँआ !
कभी जो उनकी एक झलक, नज़र से थी गयी छलक
उसीकी धुन में आज तक, फिरे हैं हम जहाँ-तहाँ
गुलाब ! अब भी डाल पे, भले ही तुम हो खिल रहे
कहाँ हैं सुर बहार के ! कहाँ हैं उनकी शोख़ियाँ !