pankhuriyan gulab ki
चलता है साथ-साथ कोई यों तो राह में
बेगानापन भी कुछ है मगर उस निगाह में
वह जानते हमीं हैं जो खायी है हमने चोट
एक बेरहम को अपना बनाने की चाह में
आयी न हो हमारी कहीं, रात, उनको याद
शबनम के भी निशान हैं फूलों की राह में
नश्तर चुभाके दिल के वे होते गये क़रीब
कहते गये हम ‘और’-‘और’ ‘आह’-‘आह’ में
दम भर भी बाग़ में न रहे चैन से गुलाब
काँटे बिछे थे प्यार के आँचल की छाँह में