pankhuriyan gulab ki

बेरुख़ी तो मेरे सरताज नहीं होती है
पर वो पहले-सी नज़र आज नहीं होती है

रूप मोहताज़ है बन्दों की नज़र का, लेकिन
बंदगी रूप की मोहताज़ नहीं होती है

सर पे काँटें भी बड़े शौक़ से रखते हैं गुलाब
तख़्तपोशी तो बिना ताज नहीं होती है