pankhuriyan gulab ki
मिल गयी क्या तेरी आँखों में झलक प्यार की थी !
आख़िरी वक़्त तड़प और ही बीमार की थी
यों चलायी थी छुरी उसने गले पर हँसकर
हम ये समझे कि अदा यह भी कोई प्यार की थी
उसको गुमनाम ही रहने दो कोई नाम न दो
वह जो ख़ुशबू सी निगाहों में इंतज़ार की थी
दोष लहरों का नहीं था न किनारों का क़सूर
दिल की पतवार तो ख़ुद ही बिना पतवार की थी
भेद तेरा उसे कोयल न कह गयी हो, गुलाब !
आज बदली हुई चितवन भी कुछ बहार की थी