pankhuriyan gulab ki
यों तो हमेशा मिलते रहे हम, दोनों तरफ़ थी एक-सी उलझन
उसने न रुख़ से परदा हटाया, हमने न छोड़ा हाथ से दामन
कोई तो और भी ज़िंदगी में था, साथ रहा हरदम जो हमारे
जब भी उठायी आँख तो देखी, हमने उसीकी प्यार की चितवन
उम्र की राह जो तय कर आये, आओ उसीसे लौट चलें अब
देखो, यहीं तुम हमसे मिले थे, यह है जवानी, यह है लड़कपन
ताब थी क्या लहरों की, डूबा दें ! नाव को डर तूफ़ान का कब था !
जिनके लिये हम मौत से जूझे, ख़ुद वे किनारे ही हुए दुश्मन
रूप की हर चितवन में बसे हम, प्यार की हर धड़कन है हमारी
किसको गुलाब का रंग न भाया ! किसमें नहीं काँटों की है कसकन !