prit na kariyo koi

पहला सर्ग

मेरा दोस्त, लिखता हूँ मैं जिसका हाल
जिसे शायरी में है हासिल कमाल
जो बचपन से हरदम रहा मेरे साथ
फिरा था बहुत हाथ में लेके हाथ
मगर जब से कालेज की हद थी छुटी
नहीं जिससे मेरी मुलाक़ात थी

वो कल मिल गया राह के मोड़ पर
उसे प्यार से लेके मैं आया घर
गये जम तो फिर उम्र की थी न क़ैद
हुई स्याह बालों की रंगत सुफ़ैद
जवानी के दिन याद आये हमें
खुले हम बहुत बात ही बात में
छिड़े प्यार के भी तराने कई
हुए जख्म ताज़ा पुराने कई
लगे थे जिसे ढूँढ़ने में सभी
खुला उसकी ग़ज़लों का वह राज़ भी

कहा मैंने–‘देखा है मुद्दत के बाद
कहो, दोस्त! कुछ उन दिनों की है याद
जवानी का जब हम पे था पहला दौर
कलेजे में उठती थी रह-रह हिलोर
ये दुनिया थी जादूगरी की तरह
थी कमसिन हरेक बुत परी की तरह
निकलते थे जब बाग़ की सैर पर
हरेक गुल में लैला थी आती नज़र

न पड़ते थे धरती पे दम भर क़दम
जुलेख़ाओं में जैसे यूसुफ थे हम!
मगर वह तो थी नौजवानी की बात
कभी दिल के हाथों से भी खायी मात?
मचायी बहुत तुमने ग़ज़लों की धूम
कई बार योरप भी आये हो घूम
कभी चोट गहरी भी अंदर लगी?
बताओ भी, कैसे कटी ज़िंदगी
ग़ज़ल का शुरू कब हुआ सिलसिला?
कहो कुछ तो, ग़म यह कहाँ से मिला!

मेरी बात सुनकर उठा वह सिहर
गयी कुछ उदासी-सी आँखों में भर
कहा–‘एक लंबी कहानी है वह
नहीं सूझता, मैं कहूँ किस तरह
कशिश मेरे फ़न में जो आती नज़र
नहीं है वो लफ़्जों का बस खेल भर
है वह प्यार की भी निशानी मेरी
सिसकती है उसमें जवानी मेरी
दिया छेड़ तुमने जो अब दिल का साज़
तो सुन लो मेरी शायरी का भी राज

“बहुत प्यार का लोग लेते हैं नाम
जो मजनूँ सुबह हैं तो फ़रहाद शाम
मगर जानते हैं वही इसकी पीर
कलेजे को जिनके दिया इसने चीर
मेरे प्यार का दर्द, यह दिल की चोट
रहे अब न दुनिया की नज़रों से ओट
कोई कुछ भी समझे, कहे कुछ भी आज
छिपाकर न रख पाऊँगा मैं ये राज़!
तनिक-सा ठहर, आके कुछ और पास
वो कहने लगा खींचकर ठंडी साँस

“जिसे प्यार कहते हैं, होता है वह
किसीसे कभी बेकहे, बेवजह
नज़र इस तरह जाके टिकती कहीं
कि दिल डाल देता है डेरा वहीं
ख़बर दीन-दुनिया की रहती न तब
हो जैसे वही ज़िंदगी का सबब
कोई सर भी उस दम जो कर दे क़लम
नहीं कुछ भी हो जान जाने का ग़म

“खड़ी धार पर तेग़ की जो चले
धधकती हुई आग में कूद ले
जो शेरों की दाढ़ों का तक़िया करे
वही बस यहाँ प्यार का दम भरे
न हो जिसको जीने का यों हौसला
न दिल जिसका भट्टी में ग़म की ढला
न तड़पा कभी दर्द से जो, भला
उसे क्याक पता, प्यार क्या है बला!
नहीं चोट जिसको लगी हो कभी
हुआ उसको जीने का अहसास भी!
कहानी तो कहने को मैंने कही
कभी जिसपे बीती हो, समझे वही

“जो कहनी थी अपनी ज़बानी नहीं
कहानी भी पर यह कहानी नहीं
मेरी ज़िंदगी का है यह एक दौर
छिपा था अभी तक, है यह बात और
कहा अपने दीवानेपन का ये हाल
नहीं क़िस्सागोई का इसमें कमाल
हुनर शायरी के भी हैं नाम के
सुनें सुननेवाले जिगर थामके!
हुई फिर से ताज़ा जवानी की याद
नज़र मोड़, दम भर ठहरने के बाद
गला साफ कर, हाथ बालों पे फेर
वो कहने लगा गुनगुना अपने शेर

‘ख़ाक समझेगा वो इस आग में जलने का मज़ा
जिसने लौ ही न लगायी है किसी और के साथ’

‘जरा जी भरके यह मासूम सूरत देख लेने दो
कि तुमसे अब नहीं मिलने की सूरत उम्र भर होगी!