ravindranath:Hindi ke darpan me
जीवनसत्य
रूपनारानेर कूले 
जेगे उठिलाम 
जानिलाम ए जगत 
स्वप्न नय ।
रक्तेर अक्षरे देखिलाम, 
आपनार रूप, 
चिनिलाम आपनारे 
आघाते आघाते 
वेदनाय वेदनाय ; 
सत्य ये कठिन ,
कठिनेरे भालोवासिलाम, 
से कखनो करे ना बंचना । 
आमृत्यूर दू:खेर तपस्या ए जीवन, 
सत्येर दारुण मूल्य लाभ करिबारे, 
मृत्यूर सकल देना शोध करे दिते ।
 
जीवनसत्य
रूपनारान के किनारे
मैंने लोचन उघाड़े
जाना कि यह संसार
नहीं है कोरा स्वप्न का विस्तार ।
इसमें रक्त के अक्षरों में लिखा
अपना रूप भी दिखा,
पहिचाना स्वयं को चोट पर चोट खाके
नित नयी वेदना पा के ।
सत्य जो कठिन है
उसी कठिन को मैंने किया है प्यार
छलता नहीं जो कभी
स्रष्टा से कराता आँखें चार ।
आमरण दुःख की तपस्या है यह जीवन,
सत्य का दारुण मूल्य पाने के लिये
मृत्यु का चुकाना होता ऋण ।

