ret par chamakti maniyan

अस्वीकृति की सीमा कहाँ तक है,
कौन कह सकता है!
देवता क्या, इसके सम्मुख तो
भगवान भी टिका नहीं रह सकता है।
यही नहीं,
अंत में हम अपने आपको सत्ता से भी
इन्कार कर दे सकते हैं,
विचारों तक के अस्तित्व को
अस्वीकार कर दे सकते हैं,
परंतु तब तो अस्वीकृति के लिए
केवल अस्वीकृति का ही प्रदेश रहेगा
यदि उसे भी नकार दिया जाय
तो फिर क्या शेष रहेगा!