ret par chamakti maniyan

रेत पर चमकती मणियाँ
रह-रह कर मुझे लुभाती हैं,
पर मैं ज्यों ही उन्हें उठाने को झुकता हूँ
वे हवा में ओझल हो जाती हैं;
सच कहूँ तो
यहाँ न रेत है, न मैं हूँ, न मणियाँ हैं,
केवल सन्नाटे में गूँजती ध्वनियाँ हैं।