sab kuchh krishnarpanam
नाच रे मयूर-मन ! नाच रे!
माना तुझे किसीने परेखा नहीं है
माना कहीं तेरी पद-रेखा नहीं है
नृत्य यह परंतु अनदेखा नहीं है
प्रियतम की पाती उठ, बाँच रे!
मणि-मोतियों से भर थल गया
कोई तुझे बंधनों में डाल गया
माना कोई बिछा स्वर्ण-जाल गया
भरनी है कि एक ही कुलाँच रे!
नभ में घन घनन-घनन गाजे हैं
देख, वहाँ किसने दृग आँजे हैं
मिलने के साज सभी साजे हैं
प्रेम पर न आये कहीं आँच रे
नाच रे मयूर-मन ! नाच रे!