sab kuchh krishnarpanam

अब यह खेल अधूरा छोड़ो,
सांध्य तिमिर घिरता आता है अब घर को रुख़ मोड़ो

सूरज को मुट्ठी में भींचे
मुँह पर झीनी चादर खींचे
कोई उत्तर रहा है नीचे
तुम भी उठकर पाँवों से यह बालू का घर फोड़ो

घड़ी-दो-घड़ी रहा ठहरना
हार-जीत का दुख क्‍या करना!
चलते क्षण आँखें क्‍यों भरना!
कितनी बार कहा ‘मिट्टी से इतना मोह न जोड़ो’

अब यह खेल अधूरा छोड़ो
सांध्य तिमिर घिरता आता है अब घर को रुख़ मोड़ो

10 जून 85 ( संध्या )

10 जून 85 की रात्रि के पिछले पहर गुलाबजी पर भीषण हार्ट अटैक हुआ | लगता
है उसीका पूर्वाभास उपर्युक्त गीत में हुआ था।