sab kuchh krishnarpanam
मृत्तिके ! तेरी ही जय होती
ले, चेतन की गर्वभरी सत्ता तुझमें लय होती
तू समुद्रबाला, नभ में किरणों का हार पिरोती
मेघों में ममता तेरी ही फूट-फूटकर रोती
तू मन, तू ही बुद्धि, चेतना तुझमें थककर सोती
मेरा ‘मैं’ भी तो तू ही है सीपी का-सा मोती
मृत्तिके ! तेरी ही जय होती
ले, चेतन की गर्वभरी सत्ता तुझमें लय होती