sab kuchh krishnarpanam
मैंने सपने में प्रिय देखे
शंकित-उर, सहमे-से जी में
पास आ गये चलकर धीमे
बोले कुछ अस्फुट वाणी में
हाथ हाथ में लेके
‘दूर हुए हम, खेद नहीं है
मन में तो विच्छेद नहीं है
मिलन-विरह में भेद नहीं है
कुछ अब मेरे लेखे’
मैंने सपने में प्रिय देखे