sab kuchh krishnarpanam

रक्षा करो इनकी, प्रभु! काल के झकोरों से
जीवन के दिन भागे जा रहे हैं चोरों-से

बचपन के जादूभरे कक्ष पार करके
यौवन की घुमावदार सीढ़ियाँ उतर के
द्वार की ओर बढ़ रहे हैं आज घर के

श्रांत-वदन, पग-पग हाँफ रहे जोरों से

पास इनके हैं मेरी प्यारी-प्यारी स्मृतियाँ
एक-से-एक मनमोहक कलाकृतियाँ
मेरी यात्रा की सभी दाँयीं-बायीं गतियाँ

रत्न जो चुने थे मैंने काल के कटोरों से

लो, अब सिर पर से निज गठरी पटक के
चरणों पर तुम्हारे ये झुके हैं मुँह ढँक के
क्षमा कर दो सब पाप-शाप अब तक के

देख कर तनिक निज चितवन की कोरों से

रक्षा करो इनकी, प्रभु! काल के झकोरों से
जीवन के दिन भागे जा रहे हैं चोरों-से