sab kuchh krishnarpanam

इस अँधेरे, बंद घर में
कौन मेरी घात में बैठा हुआ है?

नाग-सा फुफकार भरता
शेर-सा झुक वार करता
क्रुद्ध, भूखा बाज ज्यों
प्रति-निमिष अंबर से उतरता
फाड़ता मुँह को मगर-सा

दुम उठा, ऐंठा हुआ है

शस्त्र उस पर व्यर्थ सारे
यंत्र हारे, मंत्र हारे
द्वार बाहर का न कोई
भागकर जाऊँ कहाँ रे!
किस तरह भूलूँ उसे जो

प्राण में पैठा हुआ है!

इस अँधेरे बंद घर में
कौन मेरी घात में बैठा हुआ है!

10 जून 85, प्रभात
10 जून 85 की रात्रि के पिछले पहर गुलाबजी पर भीषण हार्ट अटैक हुआ | लगता
है उसीका पूर्वाभास उपर्युक्त गीत में हुआ था।