seepi rachit ret
पछतावा
जैसे भ्रमरावली पैठकर पंखड़ियों में फूलों की
चल चरणों से छिन्न-भिन्न कर देती परिमल का घेरा,
वैसे ही निज दंशन द्वारा मधुर प्रेम की भूलों की
मृदु गुंजनमय स्मृतियाँ आकर, हृदय बेध देतीं मेरा।
यदि फिर से आते वे दिन, क्या मैं उनको जाने देता
पूरा मूल्य बिना पाये ही, मेरी मधुर आयु का भाग
लिया उन्होंने जो उसका! क्षण-क्षण मृदुता से भर लेता
उन दिवसों के, मन का झूठा गर्व और लज्जा सब त्याग।
आह! प्रेम मेरे! तुम क्यों कच्चे पौधे के कलम नहीं
जिसे, जहाँ से हटा चाहता लगा जहाँ पर मैं देता
निज इच्छानुसार! मन! तुम होते मुट्ठी के रत्न कहीं,
कोई अनजाने में आकर कैसे तुम्हें चुरा लेता!
साथी! तुम्हीं हुए होते पल भर यदि मेरे अपने-से
जीवन बच जाता जीवन भर यों ज्वाला में तपने से।
1941