seepi rachit ret
मेरी कविता
जिस निगूढ़ सुषमा की मोहक छवि का होता उन्मीलन
कोयल के गीतों में, पाटल की कोमल पंखड़ियों में
प्रकृति और मानव-जग में, कहते हैं जिसे रूप-दर्शन
हृदय लुभानेवाली जो सुषमा मिलती सुंदरियों में,
प्रेमी अनुभव करता जिसे प्रिया के पहले चुंबन में,
जिस स्वर्गीय ज्योति की आभा ले अपने मुख पर जननी
हँसती पहली बार प्रथम नवजात पुत्र के दर्शन में,
और भाव जो होते कवि के बढ़ती देख कीर्ति अपनी,
कुछ वैसी हो सृष्टि हृदय में, पढ़-पढ़कर कविता मेरी,
सुख की मोहक स्मिति अधरों के अवगुंठन में झूल उठे,
चित्रित मधु-स्मृतियाँ नयनों में सपनों-सी देती फेरी
मेघों-सी घुल जाये, सुखद अनुभव में छाती फूल उठे।
नील-कमल-से इन गीतों में रूप अरूप करे धारण,
कार्य सुखद अस्तित्व मात्र, केवल इच्छा जिनका कारण।
1941