seepi rachit ret
मेरे जीवन का इतिहास
उस मुखड़े पर लिखा हुआ है मेरे जीवन का इतिहास
जो हो चुका और जो होगा, चतुर विधाता के कर से,
पढ़ता जिसे कभी मैं भौंहों बीच, कभी गालों के पास
कुटिल कुंतलों में, उड़कर जब वे बन जाते अक्षर-से।
मेरे हृदय-देश में उनकी स्मिति से सोना बिछ जाता
और तनिक भ्रू के तनते ही, जैसे अशनि-निपात-निहत,
ढहकर ऊँचा भवन कल्पना का क्षण में भू पर आता।
आशा और निराशा मुझसे करतीं यों खिलवाड़ सतत।
कमल बनेगा या कि कुमुद मेरा मन, मुझे न ज्ञात, किसे!
अभी अभी तो उदयाचल में मेरा इंदु कनक-रथ पर
उदित हुआ है घिरा नील तारावलि से, घन-पंक्ति जिसे
कभी-कभी आ ढँक लेती करुणा की किरण-सहित पथ पर।
मेरे जीवन का नाटक डूबा श्रृंगार-करुण-रस में,
अब दु:खांत करें इसको अथवा सुखांत, उनके बस में।
1941