seepi rachit ret
मैंने जितना प्यार किया है
मैंने जितना प्यार किया है तुमको उसका आधा भी
राधा-माधव से कर लेता तो छुटकर भव-कारा से
जाता स्वर्ग सदेह, रोक पाती न सुरों की बाधा भी
जड़ त्रिशंकु-सा मुझे, देख नभ-पट पर उठते तारा से—
धीरे-धीरे हीरक-रथ को, चकित देवगण झुक जाते
मुझे शुभाशिष देने के हित और युगों तक पृथ्वी पर
मेरे जन्म-दिवस पर सारे कार्य नित्य के रुक जाते
विश्व चकित हो दुहराया करता मेरे गीतों के स्वर
आज महासागर देता है एक भँवर में पर फेरी
कुंडल में शत-फण भुजंग-सा, प्राण! तुम्हारी सुंदरता
छलक रहीं जो अंग-अंग से, पिये मुग्ध प्रतिभा मेरी
वंदी है तुममें ज्यों मधुकर कलिका में उठ-उठ गिरता
खड़ा नहीं हो पाता है कृश बाँह छुड़ा कटि में घेरी
और गगन से धीरे-धीरे अंधड़ आता है घिरता
1941