shabdon se pare

देख चुके चाँदनी रात, कवि! अब अँधियाला पाख देखो
जिन सपनों के दीप जलाये, उन सपनों की राख देखो
जिनको देख सभी कुछ देखा
वे चंचल दृग, वह स्मिति रेखा
वे मधुमय रातें, वे बातें,
वह लज्जित पुलकित विधु-लेखा
गुम ऐसी वे आज हुई हैं, मिल न सकेंगी, लाख देखो,
‘क्यों इतनी तेजी से चमका!
तू नन्हा कण था शबनम का
ऊँची-ऊँची आशायें क्यों
लिये फिरा बन पुतला भ्रम का!
मेरे सपने आज मुझीको दिखा रहे हैं आँख, देखो
हूक हृदय में उठती रह-रह
दुनिया ही ज्यों बदल गयी वह
कुसुम-भवन थे जहाँ, आज
मरघट हैं, चील-शृगालों के गृह
जिस पर कभी बसेरा डाला, उजड़ चुकी वह शाख, देखो
देख चुके चाँदनी रात, कवि! अब अँधियाला पाख देखो
जिन सपनों के दीप जलाये, उन सपनों की राख देखो

1943