shabdon se pare
“फत्-फत्’ मेरे पाँवों के पीछे आता यह कौन है!
‘मेरे कंधों पर यह अंधी छाया किसकी मौन है!
मैं रुकता तो रुक जाता यह बढ़ता हूँ तो बढ़ता
मैं तरु-छाया में सुस्ताता, यह, पत्तों में चढ़ता
जीवन के हर चौराहे पर साथ-साथ मुड़ता यह
पल में तोड़ गिरा देता है, मैं जो सपने गढ़ता
यह व्यंग्यार्थ सदूश जीवन के शब्द-शब्द में गौण है
दूर-दूर जलते मरुथल-सा मुझमें सूनापन है
उड़ा ले गया यह मेरे अधरों पर का चुंबन है
मेरे पद-चिन्हों को इसने डुबो दिया सिकता में
आज पराया लगता मुझको अपना ही आनन है
जो मेरी आत्मा का धन है, वह भी मेरा क्यों न है!
रहा चाँद के साथ सदा ही बादल काला-काला
छिटक गया मेरे अधरों तक आकर मधु का प्याला
मोल किया न किसीने मेरे मन के रत्न-कणों का
मेरी ग्रीवा तक आ-आकर लौट गयी जयमाला
ढूँढ़ रहा क्यों मैं वह सुषमा, जो न कभी थी, जो न है
“फत्-फत्’ मेरे पाँवों के पीछे आता यह कौन है!
मेरे कंधों पर यह अंधी छाया किसकी मौन है!