tilak kare raghuveer

कल की कल देखी जायेगी
मुझको तो वैकुण्ठ धाम की झलक यहीं आयेगी

जब मैं नाम तुम्हारा लेकर
तड़पूँगा पीड़ा से कातर
क्या तब मेरी व्यथा न भू पर

तुम्हें खींच लायेगी!

जो सुख, नाथ! भक्ति की धुन में
वह कब है निस्पृह निर्गुण में
बन सच्चिदानंद क्या उनमें

निजता रह पायेगी!

मुझे तुम्हारी वत्सलता ने
करने दिये खेल मनमाने
क्या, यदि यही प्रेम फिर पाने

शिशुता अकुलायेगी

कल की कल देखी जायेगी
मुझको तो वैकुण्ठ धाम की झलक यहीं आयेगी