tilak kare raghuveer
काल! तू कौन, कहाँ से आया?
ओ भवभक्षक! क्या तूने निज स्रष्टा को भी खाया?
ऐसा कौन, तुझे जो जीते
फिर-फिर हुए अमरपुर रीते
ब्रह्मा के सौ दिन भी बीते
तेरा अंत न पाया
भर-भर महाशून्य का प्याला
पीता रहता बन मतवाला
कभी न जो चुकती वह हाला
बता, कहाँ से लाया
यद्यपि तू अव्यक्त, अचेतन
सत् या असत्, न जान सका मन
किन्तु न क्या तेरे ही कारण
है यह सारी माया!
काल! तू कौन, कहाँ से आया?
ओ भवभक्षक! क्या तूने निज स्रष्टा को भी खाया?