tilak kare raghuveer
क्यों तू उसको देख न पाया?
दुःख की छाया में छिपकर जो तुझसे मिलने आया!
जब तू सोया था बेसुध बन
तान रहा था काल-सर्प फण
तब पग में दे वृश्चिक- दंशन
जिसने तुझसे जगाया
बढ़ा देख जब द्वार सुनहले
अंधकूप आने के पहले
ठोकर दे, जितनी तू सह ले
जिसने तुझे बचाया
चला आरती की ले थाली
जब बिजली थी गिरनेवाली
तब जिसने झट की रखवाली
तेरा हाथ जलाया
क्यों तू उसको देख न पाया?
दुःख की छाया में छिपकर जो तुझसे मिलने आया!