tilak kare raghuveer

तू ही नहीं अधीर
तेरे पहले भी औरों को रुला गयी यह पीर

पद गाये कबीर ने झीने
गीत बंग कवि ने रसभीने
मीरा, सूर और तुलसी ने

ह्रदय रख दिया चीर

पर उनमें था श्रद्धा का बल
लक्ष्य नहीं होता था ओझल
तू शंका, दुविधा में प्रतिपल

कैसे पाये तीर!

जब तू चन्दन बन जायेगा
अपने को घिस कर लायेगा
तभी विश्व यह दोहरायेगा

’तिलक करें रघुवीर’

तू ही नहीं अधीर
तेरे पहले भी औरों को रुला गयी यह पीर