tilak kare raghuveer
प्रभु! यह महाभीरु मन मेरा
पाता नहीं प्रबोध कृपामृत पाकर भी नित तेरा
कितनी बार ग्रहों ने घेरा
देता रहा काल भी फेरा
पर क्या कर पाये वे मेरा
जब तुझको था टेरा!
फिर भी इस तम-गुहा-विवर में
प्रतिपल खो जाने के डर में
लेता श्रद्धा-दीप न कर में
कैसे कटे अँधेरा!
यदि तुझ पर विश्वास नहीं हो
क्या मेरा कल पता कहीं हो!
देखूँ फिर तो जहाँ, वहीं हो
महाशून्य का घेरा
प्रभु! यह महाभीरु मन मेरा
पाता नहीं प्रबोध कृपामृत पाकर भी नित तेरा