tilak kare raghuveer

लगा है अब तो अंतिम दाँव
फिसल रहे हैं पासे कर से, काँप रहे हैं पाँव

जीतूँ भी अब तक जो हारा
माल यहीं छूटेगा सारा
फिर न मिलेंगे मुझे दुबारा

ये साथी, यह ठाँव

सूरज जा उस पार रहा है
लौट सिन्धु का ज्वार रहा है
माँझी खड़ा पुकार रहा है

लिये तीर पर नाव

चक्र यदपि चलता जाएगा
पल यह खेल न रुक पायेगा
पर क्या मुझ-सा भी आयेगा

कोई फिर इस गाँव!

लगा है अब तो अंतिम दाँव
फिसल रहे हैं पासे कर से, काँप रहे हैं पाँव