tujhe paya apne ko kho kar

तुझे पाया अपने को खोकर
करूँ अनागत की चिंता क्यों, प्रभु! मैं तेरा होकर?

जब यह आत्मा चिर-अक्षय है
तू उदार है, करुणामय है
क्या फिर मुझे काल का भय है!

व्यर्थ मरूँ क्यों रोकर!

पल-पल सिमट रहा हो घेरा
पर जो प्राण अंश है तेरा
ग्रस न सकेगा उसे अँधेरा

जागूँगा बस सोकर

यही विनय है, जब तन छूटे
मोहमयी निद्रा तो टूटे
हार न वे कहलायें झूठे

जाऊँ जिन्हें पिरोकर

तुझे पाया अपने को खोकर
करूँ अनागत की चिंता क्यों, प्रभु! मैं तेरा होकर?

May 99