tujhe paya apne ko kho kar

जब तक डाल न छूटे कर से
भरता जा जग का उपवन, पत्ते! गीतों के स्वर से

यद्यपि बाँट रही है ये वर
कोई कोयल तुझमें छिपकर
जग तो समझ रहा, फूटे स्वर

तेरे ही अंतर से

क्या यदि वन से जाना होगा
तुझे यहाँ फिर आना होगा
सुर बस नया-पुराना होगा

काँप रहा क्यों डर से!

चाहे साथ आज का छूटे
आस्था की दृढ़ डोर न टूटे
लौटेगा ले रंग अनूठे

तू फिर माँ के घर से

जब तक डाल न छूटे कर से
भरता जा जग का उपवन, पत्ते! गीतों के स्वर से