usar ka phool
मैं तुम्हारे चित्र को ही प्यार कर लूँगा
मिल न पाया हो प्रथम परिचय वकुलवन में अभी
हों मधुर स्मिति से हुए दीपित न मन के स्वप्न भी
मैं अरूप, अनाम को साकार कर लूँगा
मैं तुम्हारी भावना को प्यार कर लूँगा
तुम विजन की चाँदनी पूजा करो पाषाण को
देख मत पाओ भले ही इस सुमन अनजान को
मैं उपेक्षा भी विहँस स्वीकार कर लूँगा
मैं तुम्हारी भूल को ही प्यार कर लूँगा
प्रीति की उलझन करे यदि विकल छवि के प्राण भी
रोक दे लज्जा अधर पर विजय की मुस्कान भी
मैं भवों को चूमकर मनुहार कर लूँगा
मैं तुम्हारे मौन को ही प्यार कर लूँगा
लो बिदा हँसते हुए भी स्वप्न मेरा तोड़कर
देख भर लो दूर से बस अंत में मुँह मोड़कर
मैं हँसी के आँसुओं का हार कर लूँगा
मैं विवशता को तुम्हारी प्यार का लूँगा
चाँद-सी गिरिघाटियों के पार तुम बसती रहो
अश्रुमय दृग-पुलिन पर बन चाँदनी हँसती रहो
मैं उसीमें निज प्रणय-अभिसार कर लूँगा
मैं मधुर स्मृति को तुम्हारी प्यार कर लूँगा।
मैं तुम्हारे चित्र को ही प्यार कर लूँगा।
1948