usar ka phool
कब आयेगा वह!
जिसकी पग-ध्वनि बजती संध्या के दिगंत में रह-रह
पर्वत की उदास घाटी में
गूँज रहे नूपुर-स्वर धीमे
रुद्ध विरह की घड़ियाँ, जगतीं
अगणित दुश्चिंताएँ जी में
सन्नाटे में अंधकार की निठुर श्याम बाँहें फैलाकर
अट्टहास-सा करता स्तब्ध गगन के बीच भयावह
कवि विराट विस्मय से अपलक
देख रहा सौंदर्य एकटक
अरुणिम किरण-चरण-तल-चुंबित
सिंधु उमड़ता दूर-दूर तक
उठा प्रतीची के मुख से लहरों का घूँघट कोई छलिया
झुक अंकित करता गालों पर तारक चुंबन शतशः
झरते स्मृतियों के बादल घिर
रोक न पाता आँसू आखिर
जी करता है एक बार ही
प्राणों का पाहुन आता फिर
अपनी अमर प्रतीक्षा देकर चला सदा के लिए गया जो
रोक नहीं पाये दुखिया आँखों के लाखों आग्रह
कब आएगा वह !
1941