usar ka phool

कूकता आया कभी था, आज तो मैं हूक बनकर जा रहा हूँ

विश्व में मधुमास था तब
और मेरे पास मधु का हास था तब
हास अधरों का नयन में आज छलछल अश्रु बनकर छा रहा हूँ

आज प्राणों में व्यथा है
किस तरह पाया इसे लंबी कथा है
तुम समझते मौन हूँ, पर सत्य तो यह है, नहीं कह पा रहा हूँ

हो भले पतझाड़ जाये
मिल मुझे दो पत्तियों की आड़ जाये
नीड़ रचने के लिए फिर से गिरी कुछ डंठलें चुन ला रहा हूँ

कूकता आया कभी था, आज तो मैं हूक बनकर जा रहा हूँ

1943