usha

प्रिय तुम तो सावन के प्रभात
मैं बदली-सी मिलने आयी, साँसों में लेकर मलय वात

जीवन हरीतिमा पिक-कुहरित
तुम उमड़ रहे बन स्नेह-सरित
मैं तरु-छाया-सी हरित-भरित

लहरों को करती आत्मसात्

अधिकारों के हित होड़ मची
मैं खड़ी तीर पर चिबुक मोड़
संतप्त ह्रदय का शान्ति-क्रोड़

मेरा स्मित-दीपित दृष्टि-पात्

तुम  कर्मशील, मैं  भावमयी
रचते मिल कर नित सृष्टि नयी
बन  बुद्धि  चेतना-सूत्र  गयी

गूँथती  विश्व  शत मनोजात

प्रिय तुम तो सावन के प्रभात
मैं बदली-सी मिलने आयी, साँसों में लेकर मलय वात