आयु बनी प्रस्तावना
- आँसू को बूँदों से गढ़ता मैं प्रतिमा सुकुमार तुम्हारी
- आज मेरे होंठ पर तिरती सुलगती प्यास किसकी
- आधा जीवन तो बीत गया !
- आ सकूँ यदि मैं न आधी रात को सागर किनारे
- इतना रूप सवारूँगा तो कर कुछ और गुमान न लोगी
- इतनी उलझन क्यों आनन पर ! मुझको आधा ही मन दे दो
- एक मृत्यु स्पंदन अपना है
- ऐसी लगन लगी प्राणों में, पीड़ा ही गलहार बन गयी
- ओ मेरे जीवन की वीणा !
- अंतर का कोई द्वार कभी तो
- किसी की ओर मत देखो कि मेरा जी दहलता है
- किसी की भावना में ज्वार आ जाए तो कैसा हो
- कैसे मिले प्राण प्राणों से, उर उर के स्पंदन से
- गिरा, खोया हुआ जैसे कहीं कुछ पा गाया हूँ मैं
- जब सुनहली चेतना के ज्वार में
- जबसे तुमसे प्यार हो गया
- जी करता है आँखें मूँदूँ
- जीवन सफल करो
- टूटी हुई लहर हूँ मैं, मुझको अलकों का साज दो
- तुमको छोड़ चला जाऊँगा
- तुमने जो कुछ दिया प्राण के
- तुम्हारी चेतना के तीर पर
- तुम्हारी मदभरी चितवन मुझे जीने नहीं देगी
- तुम्हें प्यार करने के पहले
- तुम्हें मैं किस तरह भूलूँ !
- देह नहीं मैं देहेतर से करता प्यार रहा हूँ
- धुप न रचती शीत चन्द्रिका
- न तो किसी कुंतल से उलझा
- प्रतिदिन, प्रतिपल साथ तुम्हारे
- प्राण-वीणा के सुनहले तार जब खुलने लगेंगे
- प्रिय ! सरकता जा रहा है हाथ से आँचल तुम्हारा
- फिरता रहा चतुर्दिक जग में विकल,
- बरसात कि बहारें
- मुझे तुम्हारा स्नेह चाहिए
- मेरा वश क्या टूट रही अभिव्यक्ति में
- मेरे भाग्य पड़ी जो मदिरा
- मेरे मन में कोई राधा बेसुध तान लिए बैठी है
- मेरे मन में चित्र तुम्हारा
- मैंने कब चाहा कि तुम्हारे
- मैंने तुम्हें वहां से ग्रहण किया है
- मैं तो घायल हुआ तुम्हारी मंद,
- यह इतिहास अनंत एक लघु क्षण में ले लो
- रूप की राह में, प्रेम की चाह में
- ह्रदय में बस गये मेरे,