गीत रत्नावली
- कौन यह खड़ी अँधेरे पथ पर,
- कैसे राम-चरित हम गाते !
- प्रेम पत्नी का यों गहराया
- नाथ ! यह अच्छी प्रीति दिखायी
- भली शिक्षा गुरु से थी पायी
- प्रीति यदि होती राम चरण में
- ज्योति की धारा-सी उमड़ी है
- कैसा अद्भुत यह परिवर्तन !
- राम ही राम रटे मन मेरा
- रत्ना ! अब न रुकूँगा घर में
- स्वामी ! छोड़ें यों न अनाथ
- राम के साथ कम टिक पाता !
- आपके प्रभु ने यही सिखाया
- बात तेरी सच है यह माना
- प्राण देकर भी वचन निभाते
- रत्ना! तू जीती, मैं हारा
- करूँ क्या ! हाय बता अब माई !
- भूल किससे न हुई जीवन में
- भाग्य को जीत सका है कोई
- गोद में सो जा, रत्ना ! मेरी
- कभी मेरी सुधि भी आयी है
- अब तो माँ भी नहीं रही है
- जीवन रोते रोते बीता
- डोली सज दे ओ री माई
- यदि मैं सपना देख रही थी
- रत्ना ! यों न विकल कर मन को
- सभी क्या सपने की थी माया
- उन्हें भज, रे जगजीव गँवार
- पधारें, तुलसीजी महराज !
- कौन रत्ना की दशा बताये !
- रत्ना यों मुँह रह न छिपाये
- प्रिय को कभी भुला भी पाये
- आपने हरि का जस तो गाया
- रही ले व्यथा अबोल ह्रदय की
- खोल तो रहे मुक्ति का द्वार,
- प्रीति कि रीति भली अपनायी
- प्रिया को दे वियोग परिताप,
- उचित मुझ पर आक्रोश सभी का
- आप तो अपने मन कि बोले
- प्रिये ! यों डिगा न मेरे प्रण को
- नाथ ! फिर क्यों हो विरह हमारा !
- काल का रथ यदि उलटा जाता,
- दृश्य देखे यह सकल समाज
- हुआ जो कुछ भी आज सही है