सम्पूर्ण परिचय

महाकवि गुलाब खंडेलवाल

(फरवरी २१, १९२४ — जुलाई २, २०१७)

 

 

परिचय

 

महाकवि गुलाब खंडेलवाल का जन्म अपने ननिहाल राजस्थान के शेखावाटी प्रदेश के नवलगढ़ नगर में २१ फरवरी १९२४ को हुआ था। उनके पूर्वज राजस्थान के मंडावा शहर से थे जो बिहार के गया शहर में आकर बस गये थे। उनके पिता का नाम शीतलप्रसाद तथा माता का नाम वसन्ती देवी था। उनके पिता के अग्रज रायसाहब सुरजूलालजी ने उन्हें गोद ले लिया था। कालान्तर में गुलाबजी प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश, में कुछ वर्ष बिताने के पश्‍चात अमेरिका के ओहियो प्रदेश में रहने लगे थे तथा प्रतिवर्ष भारत जाते रहते थे।

 

श्री गुलाब खंडेलवाल की प्रारम्भिक शिक्षा गया (बिहार) में हुई तथा उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से १९४३ में बी. ए. किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय हमेशा से काव्य और कला का गढ़ रहा है। अपने काशीवास के दौरान गुलाबजी श्री बेढब बनारसी के सम्पर्क में आये। साहित्य गोष्ठियों में वे मैथिलीशरण गुप्त, निराला, बाबू श्यामसुन्दर दास, बाबू सम्पूर्णानन्द, पं. रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, पं. कमलापति त्रिपाठी, पं. श्रीनारायण चतुर्वेदी, राय कृष्णदास, पं. सीताराम चतुर्वेदी, आचार्य नन्ददुलारे बाजपेयी, पं. अयोध्या सिंह उपाध्याय ’हरिऔध’ आदि से मिलने का अवसर पाने लगे। वे इन गोष्‍ठियों में कविता सुनाते तो गुरुजन-मंडली उन्हें शुभाशीष से सींचती। वय में कम होने पर भी वे उस समय के साहित्यकारों की एकमात्र संस्था प्रसाद-परिषद के सदस्य बना लिये गये जिससे उनमें कविता के संस्कार पल्लवित हुए।

 

अपनी कविताओं से लोकमानस को अपनी ओर आकर्षित करते हुये उनकी साहित्यिक मित्रमंडली तथा शुभचिन्तकों का दायरा बढ़ने लगा। फलस्वरूप सर्वश्री हरिवंश राय ‘बच्चन’, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’, डा. रामकुमार वर्मा, आचार्य सीताराम चतुर्वेदी, न्यायमूर्ति महेश नारायण शुक्ल, माननीय गंगाशरण सिंह, श्री कामताप्रसाद सिंह, श्री शंकरदयाल सिंह आदि इनके दायरे में आते गये।

 

मित्रमंडली में कश्मीर के पूर्व युवराज डा. कर्ण सिंह, डा. शम्भुनाथ सिंह, आचार्य विश्वनाथ सिंह, डा. हंसराज त्रिपाठी, डा. कुमार विमल, प्रो. जगदीश पाण्डेय, प्रो. देवेन्द्र शर्मा, श्री विश्वम्भर ’मानव’, श्री त्रिलोचन शास्त्री, श्री केदारनाथ मिश्र ’प्रभात’, श्री भवानी प्रसाद मिश्र, श्री नथमल केड़िया, श्री शेषेन्द्र शर्मा एवं श्रीमती इन्दिरा धनराज गिरि, डा. राजेश्वरसहाय त्रिपाठी, पं. श्रीधर शास्त्री, डॉ. विद्यानिवास मिश्र, श्री अर्जुन चौबे काश्यप आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय है।

 

महाकवि गुलाब खंडेलवाल पर इन पूर्ववर्ती कवियों के काव्य तथा व्यक्तित्व का प्रभाव पड़ा:

१. तुलसीदास

२. शेक्सपीयर

३. कबीर

 

अपने समकालीन व्यक्तियों में वे इन महानुभावों से अत्यधिक प्रभावित हुए थे:

१. काव्यगुरु श्री नारायणानन्द सरस्वती

२. रवीन्द्रनाथ टैगोर

३. महात्मा गाँधी

४. निराला

 

१९४१ में सत्रह वर्ष की उम्र में उनका पहला गीत और कविताओं का संग्रह ‘कविता’ नाम से महाकवि निराला की भूमिका के साथ प्रकाशित हुआ। तब से अब तक उनके पचास से ऊपर काव्यग्रंथ, दो गद्य-नाटक और एक आत्मकथा प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें से कुछ ‘डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ़ इंडिया’ में digitalized भी किए गये हैं।

 

गुलाबजी ने हिन्दी में महाकाव्य, खंडकाव्य, मसनवी, गीत, सॉनेट, रुबाई (चतुष्पदियाँ), दोहा, सम्बोधि-गीत (odes), गड़ेरिये के गीत, प्रतीक काव्य (Elegies), गाथा-काव्य (Lyrical Ballads), गीति-नाट्य (poetic drama), ग़ज़ल, मुक्त-छंद (नयी शैली की कविता) और मुक्तक आदि के सफल प्रयोग किये। इनमें से कई विधाओं का तो सूत्रपात ही उन्होंने किया और कई को पुनर्जीवित किया। इन सभी विधाओं पर उनकी लेखनी निर्बाध रूप से समान गति से चली। भाषा पर उनका पूरा अधिकार था। उनका कवित्व सामर्थ्य एक ओर संस्कृत तो दूसरी ओर उर्दू के क्षितिज को छूता था। २०१३ में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘रवीन्द्रनाथ : हिन्दी के दर्पण में’ हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर है। इसमें उन्होंने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की बंगला में लिखी कुछ कविताओं का हिन्दी में भावानुवाद किया।

 

गुलाबजी ने हिन्दी में गज़लों की रचना करके हिन्दी में उर्दू के स्वीकृत शब्दों के योग से गज़लों के अनुरूप भाषा का सफलतापूर्वक प्रयोग किया। उन्होंने लगभग पौने चार सौ गज़लें लिखी।

 

उर्दू मसनवी की शैली में गुलाबजी की रचना ‘प्रीत न करियो कोय’ हिन्दी के काव्य-साहित्य में एक नया आयाम जोड़ती है। इस मसनवी से वे उर्दू के प्रमुख मसनवी-लेखक मीर हसन और दयाशंकर ‘नसीम’ की श्रेणी में उसी प्रकार आ गये जिस प्रकार अपने भक्ति-गीतों की सुदीर्घ श्रृंखला द्वारा कबीर, सूर, और तुलसी की परंपरा में उन्होंने अपना स्थान सुरक्षित करा लिया।

 

गुलाबजी ने हिन्दी और उर्दू के अलावा अंग्रेज़ी में भी कवितायेँ लिखी जिससे भारत देश के बाहर विदेश में भी लोगों ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। ‘The Selected Poems’ में उन्होंने अपनी कुछ हिंदी कविताओं का अंग्रेज़ी में भावानुवाद किया और कश्मीर के पूर्व राजकुमार डॉ. कर्ण सिंह की भूमिका के साथ प्रकाशित किया। उनकी मौलिक अंग्रेजी कविताओं की पुस्तक ‘The Evening Rose’ ने उन्हें अंग्रेजी कवियों के बीच स्थापित किया। उनकी अंग्रेजी की नवीनतम पुस्तक ‘Omar Khayyam and the Scholar’ प्रकाशनाधीन है। इस प्रकार, हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी की तीनों ही भाषाओं में प्रतिष्ठा पानेवाले वे हिन्दी के प्रथम कवि हुए हैं।

 

 

मौलिक कार्य

 

गुलाबजी आजीवन अपनी मौलिक उद्भावनाओं से भारती के भंडार को समृद्ध करते रहे। उन्होंने अपना लक्ष्य यही निर्धारित किया –

 

“गंध बनकर हवा में बिखर जायँ हम

ओस बनकर पँखुरियों से झर जायँ हम

तू न देखे हमें बाग़ में भी तो क्या

तेरा आँगन तो ख़ुशबू से भर जायँ हम”

 

साहित्य के क्षेत्र में गुलाबजी के अवदान को नकारा नहीं जा सकता। उनका यह अवदान दो प्रकार का है। उन्होंने न सिर्फ़ उत्कृष्‍ट साहित्य की रचना की बल्कि आनेवाली पीढ़ियों के लिये पगडंडियाँ भी बनाकर छोड़ी।

 

वे काव्य की अनेक विधाओं के प्रथम प्रणेता रहे हैं जिनका संक्षेप में उल्लेख इस प्रकार है –

 

१. दोहा

 

दोहा बहुत पुराना छन्द है किन्तु आधुनिक हिन्दी में ‘बिहारी’ जैसे श्रृंगार के दोहे तथा डिंगल कवि सूर्यमल्ल जैसे वीररस के दोहे सर्वप्रथम गुलाबजी ने ही प्रस्तुत किये। इन दोहों में उच्च कोटि की भावप्रवणता एवं भाषा का कसाव तथा प्रवाह कवि के सामर्थ्य के द्योतक हैं।

 

२. सॉनेट

 

गुलाबजी ने अंग्रेज़ी के सॉनेट रूप का हिन्दी में प्रथम बार १९४१ में प्रयोग किया। अनजान लोगों ने त्रिलोचन शास्त्री को सॉनेट के प्रवर्तक का नाम दे दिया। किसी ने शास्त्रीजी की पुस्तक खोल कर देखने का कष्‍ट भी नहीं किया कि वह गुलाबजी की पुस्तक के कितने समय बाद छपी थी तथा जिन्हें सॉनेट कहा जा रहा है वे सॉनेट की कसौटी पर खरे उतरते भी हैं या नहीं। सॉनेट केवल छन्द नही, अभिव्यक्ति की एक विधा है। केवल चौदह पंक्तियों की कविता सॉनेट नहीं हो जाती, पंक्‍तियों में विशेष प्रकार से तुकान्त का निर्वाह तथा अन्तिम दो पंक्तियों में भाव का समाहार भी होना चाहिये। त्रिलोचन शास्त्री की कविता में इन दोनों प्रमुख लक्षणों का अभाव होने से वे सॉनेट थे ही नहीं। गुलाबजी ने सॉनेट को इतना साध लिया था कि गाँधीजी के देहावसान के समाचार से मर्माहत होकर दो रातों में ४६ सॉनेटों की रचना कर डाली जो अविकल रूप से ’गाँधी-भारती’ के नाम से छपे। यद्यपि उनका सॉनेट को दिया गया हिन्दी नाम ‘स्वानुभूति’ प्रचलित नहीं हो पाया पर सॉनेट सदा उनके लिये अभिव्यक्ति का स्वाभाविक प्रकार रहा।

 

३. ग़ज़ल

 

गुलाबजी ने हिन्दी ग़ज़लों का सर्वप्रथम १९७१ में प्रवर्तन किया। यों तो इसे हिन्दी में ढालने का प्रयास काफ़ी समय से किया जा रहा था, किन्तु उर्दू की बहरों (छंदों) को हिन्दी भाषा में उतार लेने भर से हिन्दी ग़ज़ल नहीं बन जाती, हिन्दी की प्रतीक योजना, बिम्ब-विधान, आधारभूत दर्शन को भी इसमें गूँथना आवश्यक था। गुलाबजी ने इस संतुलन को साधा तथा हिन्दी भाषा के साथ उर्दू की आत्मा को भी ग़ज़ल में उतारा। जिस प्रकार छायावादी कवियों ने हिन्दी-साहित्य को, नई पदावली, अभिव्यक्ति के नये आयाम और भावों की सूक्ष्मता दी, उसी प्रकार गुलाबजी ने भी अपनी ग़ज़लों के प्रयोग से हिन्दी में नई संभावनाओं का विस्तार किया। आज ग़ज़ल हिन्दी की एक प्रचलित विधा है तथा इसका काफ़ी श्रेय भारती के इस मूक साधक को जाता है।

 

गुलाबजी द्वारा लिखी ग़ज़लों की चार में से तीन पुस्तकें उत्तर प्रदेश सरकार से पुरस्कृत हुईं। इस प्रकार गुलाबजी ने न केवल हिन्दी में ग़ज़ल लिख कर साहित्य को समृद्ध किया बल्कि अगले ग़ज़लकारों का मार्ग भी प्रशस्त किया।

 

कुछ लोगों ने दुष्यन्त कुमार को हिन्दी ग़ज़ल का प्रवर्तक बताने का प्रयास किया किन्तु दुष्यन्त कुमार की ग़ज़ल की एकमात्र पुस्तक ‘धूप में साये’ का प्रकाशन गुलाबजी की ग़ज़ल-पुस्तक ‘सौ गुलाब खिले’ (प्रकाशनवर्ष १९७३ – १०९ ग़ज़लें) के तीन वर्षों के बाद १९७६ में हुआ है। इसके अलावा ‘धूप में साये’ की ६०-७० ग़ज़लों में हिन्दी और उर्दू ग़ज़ल का मिश्रित रूप है। कोई शेर उर्दू का, कोई हिन्दी का तो कोई आधा हिन्दी, आधा उर्दू का है। अपने आप में यह एक अच्छा प्रयास है किन्तु गुलाबजी की ग़ज़लों के साथ रखने पर दोनों के अन्तर को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।

 

४. गीति-काव्य

 

सभी छायावादी कवियों ने सुन्दर गीत लिखे पर तत्समबहुल शब्द-विन्यास तथा वायवीयता, अस्पष्टता तथा एकान्विती का अभाव आदि छायावादी दोषों से आच्छन्‍न इन गीतों के तार न तो लोक-मानस से जुड़ सके न गायन से। ये साहित्यिक गीत केवल कविता की एक शैली के रूप में ही ग्राह्य हो पाये। गायन के लिये अब भी मध्ययुगीन गीतों का सहारा लेना पड़ता था। इससे उत्प्रेरित होकर गुलाबजी ने गेय गीतों की परंपरा को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। गुलाबजी ने एक हजार से ऊपर गेय गीतों की रचना द्वारा साहित्य से संगीत को जोड़ने का दुर्वह कार्य करके हिन्दी साहित्य की बहुत बड़ी सेवा की। यही नहीं, उनके गेय गीतों में पाँच सौ से ऊपर भक्ति-गीत हैं। इन गीतों ने सैकड़ों वर्षों से अवरुद्ध भक्ति-काव्य-धारा को आधुनिक काल के अनुरूप काव्य की वाणी देकर पुन: जीवित कर दिया है। इन भक्ति-गीतों के संग्रह ‘भक्ति-गंगा’ तथा ‘तिलक करे रघुबीर’ का उद्‍घाटन १९९७ में माननीय राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा के कर-कमलों द्वारा हुआ था। इन गीतों की भाषा सरल, भाव सघन तथा दर्शन गहन है। इनमें गेयता के साथ ही विशिष्‍ट तथा सामान्य – दोनों जनों को लुभाने की क्षमता है। संगीत में बद्ध होकर बहुत से गीतों ने गुलाबजी के प्रयोग की सार्थकता को प्रमाणित किया है।

 

गुलाबजी ने ‘गीत-वृन्दावन’, ‘सीता-वनवास’ तथा ‘गीत-रत्नावली’ जैसे गीति-काव्यों की रचना करके राधा, सीता, और रत्नावली के जीवन की त्रासदी को भी नये रूप में प्रस्तुत किया। इन तीनों पुस्तकों में गुलाबजी ने कथा के तारतम्य को गेय गीतों में इस प्रकार बाँधा कि उन्हें मंच पर गीति-नाट्य अथवा नृत्य-नाट्य के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है। इस प्रकार ये तीनों पुस्तकें प्रबंध भी हैं तथा मुक्तक भी; दृश्य हैं तथा श्रव्य भी; पाठ्य हैं तथा गेय भी। इनके कई गीत गाये तथा सराहे गये हैं तथा कई का मंच पर नृत्य के साथ प्रस्तुतिकरण भी हुआ है।

 

‘बलि-निर्वास’ (दानवीर बलि) मिश्र काव्य (चम्पू-काव्य) अथवा गीति-नाट्य का विरल उदाहरण है। इसने परवर्ती साहित्य को काफ़ी प्रभावित किया है। ‘दिनकर’ की ‘उर्वशी’ से काफ़ी पूर्व की इस रचना का अप्सरा प्रसंग द्रष्‍टव्य है।

 

 

गुलाबजी के काव्य पर मिले विभिन्न पुरस्कार

 

  • उषा (महाकाव्य) – उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत – १९६७ में
  • रूप की धूप – उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत – १९७१ में
  • सौ गुलाब खिले – उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत – १९७५ में
  • कुछ और गुलाब – उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत – १९८० में
  • अहल्या (खंडकाव्य) – उत्तर प्रदेश द्वारा विशिष्ट पुरस्कार – १९८० में
  • अहल्या (खंडकाव्य) – श्री हनुमान मन्दिर ट्रस्ट, कलकत्ता, अखिल भारतीय रामभक्ति पुरस्कार – १९८४ में
  • आधुनिक कवि, १९ – बिहार सरकार द्वारा, साहित्य सम्बन्धी अखिल भारतीय ग्रन्थ पुरस्कार – १९८९ में
  • हर सुबह एक ताज़ा गुलाब – उत्तर प्रदेश द्वारा निराला पुरस्कार – १९८९ में

 

गुलाबजी की कुछ पुस्तकें महाविद्यालयों के शिक्षण-पाठ्यक्रमों में भी रह चुकी हैं।

 

  • ‘उषा’ महाकाव्य – मगध विश्वविद्यालय के बी. ए. के पाठ्यक्रम में १९६८ से कई वर्षों तक रहा।
  • ‘कच-देवयानी’ खंडकाव्य – मगध विश्वविद्यालय के बी. ए. के पाठ्यक्रम में था।
  • ‘अहल्या’ खंडकाव्य – मगध विश्वविद्यालय के बी. ए. के पाठ्यक्रम में था।
  • ‘आलोक-वृत्त’ खंडकाव्य – मगध विश्वविद्यालय के बी. ए. के पाठ्यक्रम में १९७६ से था।
  • ‘आलोक-वृत्त’ खंडकाव्य १९७६ से उत्तर प्रदेश में इंटर के पाठ्‌यक्रम में स्वीकृत है।

 

 

गुलाबजी की प्रतिभा को देश तथा विदेश में सम्मान मिला

 

भारत

  • १९७९ में उत्तर प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने गुलाबजी को सम्मानित किया।
  • १९८९ में गुलाबजी को हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, द्वारा पद्मभूषण डा. रामकुमार वर्मा की अध्यक्षता में ‘साहित्य वाचस्पति’ (पी. एच. डी.) की सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित किया गया।
  • १९९७ में गुलाबजी की दो पुस्तकों – ‘भक्ति-गंगा’ तथा ‘तिलक करें रघुबीर’ – का उद्‍घाटन माननीय राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा के कर-कमलों द्वारा हुआ।
  • २००१ में उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में गुलाबजी को श्री मुरारी बापू, श्री विष्णुकांत शास्त्री, श्री शांतिभूषण तथा मुलायम सिंह यादव ने मिलकर सम्मानित किया, जिसपर मुरारी बापू ने कहा, “आज धर्म, शासन, राजनीति और कानून ने एकसाथ आपको सम्मानित किया है”।

 

अमेरिका

  • गुलाबजी को १३ जुलाई १९८५ को काव्य-सम्बन्धी उपलब्धियों के लिये अमेरिका के बाल्टीमोर नगर की मानद नागरिकता (Honorary Citizenship) प्रदान की गयी। इस अवसर पर मेरीलैंड के गवर्नर ने समस्त मेरीलैंड स्टेट में १३ जुलाई को हिन्दी-दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।
  • ६ दिसम्बर १९८६ को अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति, अमेरिका, द्वारा राजधानी वाशिंग्टन डी. सी. में विशिष्ट कवि के रूप में उन्हें सम्मानित किया गया।
  • १० अक्टूबर १९९८ को गुलाबजी को अल्बर्टा हिंदी परिषद, एडमंटन (कनाडा), ने सम्मानित किया।
  • २६ जनवरी २००६ को अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी. सी. में अमेरिका और भारत के सम्मिलित तत्वाधान में आयोजित गणतन्त्र-दिवस समारोह में मेरीलैंड के गवर्नर द्वारा गुलाबजी को ‘कवि-सम्राट’ की उपाधि से अलंकृत किया गया।
  • २८ अप्रैल २०१३ को अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, ऑहियो (अमेरिका), ने हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें ‘आज के तुलसीदास’ खिताब से सम्मानित किया।
  • २२ अप्रैल २०१७ को ऑहियो (अमेरिका) की वज़्मे-सुखन संस्था ने गुलाबजी के साहित्यिक योगदान पर उन्हें ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया।

 

 

गुलाबजी बीस वर्षों से भी अधिक काल तक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, के सभापति रहे। इस पद पर वे सर्वसम्मति से लगातार छः बार चुने गये। २००७ में पं. मालवीयजी द्वारा स्थापित सुप्रसिद्ध साहित्यिक संस्था भारती परिषद, प्रयाग, के वे अध्यक्ष चुने गये। अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की ओर से अमेरिका में प्रकाशित त्रयमासिक पत्रिका ’विश्वा’ के सम्पादक-मंडल के वे १५-१६ वर्षों तक वरिष्ठ सदस्य रह चुके थे। गुलाबजी ‘अर्चना’ (कोलकाता) के अध्यक्ष भी रह चुके थे। गुलाबजी के सभापतित्व में श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने वाशिंगटन डी. सी. (अमेरिका) में कविता पाठ किया था।

 

 

महाकवि गुलाब खंडेलवाल के काव्य पर हुये शोध

 

गुलाबजी के साहित्य पर सर्वप्रथम मुकुल खंडेलवाल ने एम. ए. का शोध-निबन्ध १९७८ में मगध विश्वविद्यालय से श्री श्याम नंदन सिंह के निर्देशन में प्रस्तुत किया था। उसके बाद श्री हंसराज त्रिपाठी के निर्देशन में दो शोध-निबन्ध अवध विश्वविद्यालय से हुये। श्रीमती प्रतिभा खंडेलवाल भी मगध विश्वविद्यालय से उनके साहित्य पर पी. एच. डी. का शोधपत्र पूरा कर चुकी हैं।

 

गुलाब खंडेलवाल के काव्य के विविध अंगों पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में पी. एच. डी. के सात शोधनिबंध लिखे जा चुके हैं तथा तीन और शोधपत्रों पर कार्य हो रहा है. इन सात विद्यार्थियों को पी. एच. डी. की उपाधि प्रदान की गई:

 

  • सागर विश्वविद्यालय, मध्य-प्रदेश से यशवन्त सिंह को १९६६ में – ‘हिंदी के वाद-मुक्त कवि’
  • मगध विश्वविद्यालय, बिहार से रवीन्द्र राय को १९८५ में – ‘कवि गुलाब खंडेलवाल व्यक्तित्व और कृतित्व’
  • मेरठ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश से विष्णुप्रकाश मिश्र को १९९२ में —‘गुलाब खंडेलवाल: जीवन और साहित्य’
  • रुहेलखंड विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश से पूर्ति अवस्थी को १९९४ में – ‘कवि गुलाब खंडेलवाल के साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन’
  • महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश से स्नेहकुमारी कनौजिया को २००६ में–‘गुलाब खंडेलवाल के काव्य का शास्त्रीय अध्ययन’
  • कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, हरियाणा से से राज यादव डॉ॰ रमापति सिंह के निर्देशन में हुये एक शोध को २००८ में
  • अवध विश्वविद्यालय से अंकिता मिश्रा २०११ – ‘कवि गुलाब की काव्य दृष्टि’

 

इन तीन शोधपत्रों पर काम ज़ारी है:

 

  • राकेश कुमार गुजरनिया – राजस्थान विश्वविद्यालय – ‘गुलाब खंडेलवाल की काव्य भाषा में राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति’
  • नागपुर विश्वविद्यालय से कुमारी मोनिका गोडारा – ‘महाकवि गुलाब खंडेलवाल की काव्य भाषा और शिल्प विधान’
  • संजीव कुमार पाठक, मगध विश्वविद्यालय –‘हिंदी गीत विधा में गुलाब खंडेलवाल का योगदान’

 

उपर्युक्त शोध उनके समग्र साहित्य पर हुये हैं। गुलाबजीका काव्य-संसार बहुत विशाल है। अब आवश्यकता है कि उनके ग़ज़ल-साहित्य, गीति-काव्य, प्रबन्ध-काव्य, प्रसंगगर्भत्व, छन्दविधान, भाषा-प्रयोग, नाट्य-साहित्य, नूतन प्रयोग आदि पर अलग-अलग शोध किये जायें तभी उनके साथ न्याय हो सकता है।
 

अंत में

 

लगभग ७५ से अधिक वर्षों तक कविता की उपासना करनेवाले कवि से यह तो आशा नहीं की जा सकती कि वह केवल एक प्रकार की ही साहित्य की धारा या प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करे। गुलाबजी के भी हमें विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। वे प्रबन्धकार हैं तो ग़ज़लकार, और गीतकार भी; छन्दबद्ध काव्य में सिद्धहस्त हैं तो छन्दमुक्‍त काव्य तथा हाइकू में भी उतना ही अधिकार रखते हैं।

 

खेमों में बँटी हुई दुनिया में स्वतन्त्रचेता गुलाबजी कभी प्रवाह के साथ नहीं चले, कभी किसी गुट या वाद का सहारा नहीं लिया। उन्होंने सदैव नूतन प्रयोग किये तथा सदा प्रगति के पथ पर अग्रसर रहने से वे सच्चे अर्थों में प्रगतिवादी रहे।

 

गुलाबजी हिन्दी के विशिष्ट कवि थे तथा विदेश में रहकर हिन्दी की सेवा निरंतर कर रहे थे। उन्होंने उच्च कोटि के साहित्य-सृजन के साथ-साथ विदेश में रहकर हिन्दी के प्रचार प्रसार में विशेष योगदान दिया। छायावाद-चतुष्टय – प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी – के बाद हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में उनकी गणना होती है।