तिलक करें रघुबीर
- अकेला चल, अकेला चल
- अकेले मुझको छोड़ न देना
- अपनी सेवा का अवसर दे
- अपेक्षा जग में सबसे त्यागी
- अपेक्षा जग से क्या करता है
- अब यह घटा बरस ले जम के
- इसमें तेरी कौन बड़ाई
- और क्या तुझे चाहिये, बोल
- कभी तो ठहरे यह मन मेरा
- कभी यदि ऐसा देखो कोई
- करूँ क्या, यदि मन हो न विरागी!
- कल की कल देखी जायेगी
- कहाँ वह पीर प्रेम की पाऊँ
- काल !तू कौन,कहाँ से आया ?
- काल की हो अनंत भी धारा
- किस सुर में मैं गाऊँ?
- कृपा का कैसे मोल चुकाऊँ !
- कैसे आऊँ द्वार तुम्हारे?
- कैसे आऊँ शरण तुम्हारी!
- कैसे तेरे सुर में गाऊँ!
- कैसे पहुँचूं तुझ तक स्वामी!
- कैसे मुझे सँभालोगे!
- कैसे यह अभिनय कर पाऊँ!
- कौन अपना है, कौन पराया!
- कौन इस पीड़ा को पहिचाने
- कौन-सा रूप ध्यान में लाऊँ!
- क्या नहीं इस जीवन में पाया
- क्यों तू उसको देख न पाया
- क्यों तू चिंता करे अभागे!
- क्यों तू माला व्यर्थ बनाये!
- क्षमा का ही तेरी संबल है
- क्षमा यदि कर न सके अपराध
- खुला है अंध गुफा का द्वार
- खेल लेने दो मन के दाँव
- गीत तो रच-रच कर लिख डाले
- चला मैं सदा लीक से हट के
- चलो धीरे से इस बस्ती में
- चाह यह नहीं पूर्ण निष्कृति दो
- चित्र भी यदि मिटनेवाले हैं
- छोड़ मत देना पथ के बीच
- जब तक तेरे निकट न आऊँ
- जलो, वैश्वानर! खूब जलो
- झलक भी यदि न रूप की पाऊँ
- तभी तक है सपनों का फेरा
- तू ही तू जब दायें-बायें
- तू ही नहीं अधीर
- तूने कितना नाच नचाया
- तूने कितना प्रेम निभाया!
- तूने कैसा खेल रचाया!
- तेरी करूणा आड़े आयी
- तेरी बिगड़ी कौन बनाये!
- दया यह भी कम थी न तुम्हारी
- दर्पण कैसे उन्हें दिखाए!
- दुनिया मेरी है या तेरी
- न है मेरे दोषों की माप
- नहीं भी इस तट पर आयेंगे
- नहीं यदि तुझ तक भी पहुँचेगी
- नहीं यदि तेरा मी सहारा
- नहीं यदि मेरा त्रास हरोगे
- नाथ ! तुम कब से हुए विरागी?
- नाथ! क्या माँगूँ चाँदी-सोना
- नाथ! क्यों डांड़ चलाना छोड़ा?
- निर्जन सागर-वेला
- नींद कब सुख की आएगी?
- पत्री मैंने भी भिजवायी
- पूछते भी अब तो डरता हूँ
- प्रभु! यह महाभीरु मन मेरा
- प्रेम की पीड़ा पल न भुलाऊँ
- प्रेम प्रभु चरणों में दृढ़ होता
- बरसो, हे करुणा के जलधर !
- बाँधकर नियमों से जग सारा
- बैठकर मेरे सुर में गाओ
- भगवती आद्याशक्ति भवानी
- भरोसा है तेरे ही बल का
- भाग्य पर दोष व्यर्थ मढ़ता है
- मन का यह विश्वास न डोले
- मन मेरे! नीलकंठ बन
- मन रे! किसने तुझे लुभाया!
- मन रे! डांड न छूटे कर से
- मन! तू अब भी तोष न माने
- माना कुछ मेरा न यहाँ था
- मार्ग कैसा भी बीहड़ आये
- मुझ-सा कौन यहाँ बड़भागी !
- मुझे तो एक भक्ति का बल है
- मुझे तो वही रूप है प्यारा
- मुझे फिर है इस जग में आना
- मुझे भी अपना दास बनाओ
- मेरे अंतर में छा जाओ
- मेरे संग संग चलने वाले
- मैं तो बस चुप मार रहूँगा
- यदि मैं चित्र न देखूँ तेरे
- यह मन बड़ा हठी है नाथ
- लगा है अब तो अंतिम दाँव
- लिखूँ क्या, जब तक तू न लिखाये
- वही हो नाव वही हो धारा
- विवशता हैं ये तानें मेरी
- वृथा ही तू क्यों जूझ मरे!
- व्यर्थ क्यों घुट-घुट मरना है!
- शक्ति दे, मन को सुदृढ़ बनाऊँ
- शरण में, माँ! मुझको भी ले ले
- सभी फल तोड़-तोड़ ले जाए
- सही कर दे तू, तभी सही है
- सोच में यदि दिन रात मरुँ
- हमारे कहने पर मत जायें
- हाथ से छूट रही है वीणा
- हुए सब एक-एककर न्यारे