aayu banee prastavana
तुमको छोड़ चला जाऊँगा
कस न सकेंगे ये भुज-बंधन, मैं मुँह मोड़ चला जाऊँगा
पलकों के आँसू से गीले
यद्यपि चरण पड़ेंगे ढीले
उलझी अलकें, नयन कँटीले
व्यर्थ सभी होंगे पर जब मैं नाता तोड़ चला जाऊँगा
किसे न कुसुम-कपोल सुहाते!
ये मृणाल-भुज किसे न भाते!
लिपट हृदय से जाते-जाते
चूम अरुण करतल, आँखों से आँखें जोड़ चला जाऊँगा
दुहराकर भौंहों के बल को
गुनना सुने प्रेम के छल को
स्मृति भी रहे न मेरी पल को
मैं प्रभात के श्वेत घनों से लेता होड़, चला जाऊँगा
ऐसा दिन, ऐसी ही रजनी
ऐसी मधु-ऋतु होगी, सजनी!
मुझे तुम्हाती पायल बजनी–
सुन न सकेगी, दूर, प्रिये! मैं कोस करोड़ चला जाऊँगा
तुमको छोड़ चला जाऊँगा
1954