usar ka phool
शब्द मेरे
फैल जाओ चिनगियों-से शब्द मेरे
उड़ निखिल संसार में
दूर गाँवों के निभृत गृह के अँधेरे
दीनतम परिवार में
मनुज-भाल-कलंक, कृश कृमि-से सरकते
वृद्ध असमय के जहाँ
हाथ भर ऊँचे घरौंदे, जो दरकते
स्पर्श से, जाओ वहाँ
तुम उन्हीं के बीच निज रच लो बसेरे
सिमट लघु आकार में
अनलपंखी जुगनुओं-से गीत मेरे
उड़ चलो संसार में
तुहिन-दीपों से गये बुझ स्वप्न जिनके
प्रात की छूते किरण
जो धरा पर ज्यों मरुत-संत्रस्त तिनके
भटकते कंपित-चरण
जो विकल, लांछित, पराजित, भग्न, दुर्बल
फिरे जीवन-समर से
अश्रु उनके पोंछ, दो साहस, बढ़ें कल
धूलि से उठ, निडर-से
तुम्हीं आशा-पोत जल-प्लावित नयन के
तिमिर-पारावार में
शब्द मेरे उड़ो स्वर्ग-कपोत बन के
दुख-विकल संसार में
1950