geet ratnavali
राम ही राम रटे मन मेरा
कैसी प्रिया! कहाँ के प्रियजन! टूट चुका अब घेरा
भीतर राम, राम हैं बाहर
अनिल, अनल, जल, थल, भू, नभ पर
सब में खड़े वही ले धनु-शर
भ्रम का मिटा अँधेरा
देवि! छुड़ा तूने गलफाँसी
दिखा दिये प्रभु घट-घट-वासी
चलूँ, मुझे देगी अब काशी
निज चरणों में डेरा
गंगाजल शिव पर न॒ चढ़ाया
यश न अन्नपूर्णा का गाया
तो कब निज प्रभु से मिल पाया
लाख लगाऊँ फेरा!
राम ही राम रटे मन मेरा
कैसी प्रिया! कहाँ के प्रियजन! टूट चुका अब घेरा