sita vanvaas
विदा करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पडी बहुएँ –‘न्याय यही कहलाता!
‘हमने बचपन साथ बिताये
ब्याह हुआ सँग-सँग पति पाये
सीता को ही दुख दिखलाये
क्यों नित नये विधाता!
‘कोमल-चित् थे जेठ हमारे
बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे!
छिपे कहाँ वे ऋषि-मुनि सारे!
कोई तो समझाता!
‘तब वन में था बल स्वामी का
सिर पर था न अयश का टीका
अब तो टूट रहा भगिनी का
इस घर से ही नाता’
विदा करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पडी बहुएँ –‘न्याय यही कहलाता!