सीता-वनवास_Sita-Vanvaas

  1. देखना था यह दिन भी आगे
  2. कैकेई मन में थी पछताती
  3. विदा करने निकली जब माता
  4. कौन मारुति को धैर्य बँधाता!
  5. नाथ! आज्ञा दें, अब मैं जाऊँ
  6. न यह संवाद जनकपुर जाये
  7. भले पावक को सौंप न पाये
  8. मैं था भाई बहुत दुलारा
  9. बात अंगद को तनिक न भायी
  10. इन्द्र की सभा रो पड़ी सारी
  11. देख मुनि-आश्रम-छटा निराली
  12. स्वप्न में सीता मिथिला आयी
  13. चली जल को सीता सुकुमारी
  14. कहाँ हो, महावीर बलशाली
  15. स्वामी को कभी हनुमान
  16. कभी मेरी सुधि भी आती है
  17. विजय की चर्चा थी जन-जन में
  18. राम! ‘लौटा दे बहू हमारी’
  19. रात-भर प्रभु को नींद न आयी
  20. न था प्रभु को यों चंचल पाया
  21. बाल-क्रीड़ा जब लव-कुश करते
  22. सीता आँसू रोक न पायी
  23. अवध में छाया विस्मय भारी
  24. गाते रामायण मृदु स्वर
  25. शोक का सागर ज्यों लहराया
  26. मिला दुख ही दुख जब क्षण-क्षण में
  27. पवनसुत चरणों में लपटाये
  28. शिलाखंडों ने राह बनायी
  29. जहाँ जी चाहे सीता जाये’
  30. देवर! अग्निकुंड धधकाओ
  31. सती बैठी पद्मासन मारे
  32. कंठ मुनि शिष्यों के भर आये
  33. स्वामी! यह क्या मन में आया
  34. प्रभो! अच्छा पत्नीव्रत पाला !
  35. विजय रावण पर कैसे पायी!
  36. मन कैसे ‘सीताराम’ कहे!
  37. देख आँसू प्रभु के नयनों में
  38. वन में राजसभा उठ आयी
  39. सीते! लौट अवध में आओ
  40. सुन पति-वचन स्नेह में साने
  41. पुत्री! सूना भवन बसा दे
  42. उठ कर बाल्मीकि तब बोले
  43. शिष्य लवकुश ये दोनों प्यारे
  44. देखती जननी मौन रही
  45. सीता! शोक भुला दे मन का
  46. वचन सुन-सुन कर प्यारे-प्यारे
  47. माना, दोष बड़ा था मेरा
  48. अवध में कैसे पाँव धरूँ!
  49. सभा में सन्नाटा था छाया
  50. जो हैं जन्म-जन्म के स्वामी
  51. नित्य देनी है अग्निपरीक्षा
  52. अब है परम शांति अंतर में
  53. नहीं भी लौट अवध में जाये
  54. गोद में ले ले धरती माता!
  55. लव-कुश बेसुध दौड़े आये
  56. सती को लेने जब रथ आया
  57. विरह ही अंतिम सत्य भुवन का
  58. देख प्रभु-नयन अश्रु से छाये
  59. उठा पाताल धरा पर लाऊँ
  60. अवध की शोभा उजड़ गयी
  61. नाथ! जब सरजू लेने आयी
  62. नाम लेते जिनका दुख भागे
  • “यदि गुलाबजी ने और कुछ भी न लिखकर केवल ’गीत-वृन्दावन’ और ’सीता-वनवास’ की रचना की होती तो भी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों में उनकी गणना होती.”

-इंदुकांत शुक्ल (यू॰एस॰ए॰)