sita vanvaas

वचन सुन-सुन कर प्यारे-प्यारे
शांत न रह पायी सीता दुख, ग्लानि, क्षोभ के मारे

बोली– “मुझे न हठ करना है
दोष न स्वामी पर धरना है
पर जब पिछला ऋण भरना है

रहूँ मौन क्‍यों धारे!

‘झेला जो मैंने अब तक है
जो काँटे-सा रहा कसक है
न्याय कहाँ तक वह सम्यक हैं

बोलें गुरुजनन सारे

*रामराज्य था अग-जग के हित
क्यों मैं ही उससे थी वंचित!
पति नृप बन जब कर दे दंडित

पत्नी कहाँ पुकारे!’

वचन सुन-सुनकर प्यारे-प्यारे
शांत न रह पायी सीता दुख, ग्लानि, क्षोभ के मारे